पिता का साया (कहानी) प्रतियोगिता हेतु24-Apr-2024
पिता का साया (कहानी) प्रतियोगिता हेतु
मोनिका ने रोहन को आवाज़ दिया बेटा, बेटा !उठ जाओ शाम हो गई है होमवर्क कर लो पापा के आने का टाइम हो गया है। शाम को हमें पापा के साथ घूमने जाना है। पापा का नाम सुनते ही रोहन फटाफट अपना स्कूल बैग उठाया ऊपर के कमरे में जाने लगा। लेकिन अभी दो-चार सीढ़ियांँ बची ही थीं कि उसका का पैर स्लिप कर गया और वह अचानक गिरते गिरते बचा।
रोहन जैसे ही गिरने वाला था उसी समय अचानक उसे ऐसा महसूस हुआ जैसे कोई अदृश्य हाथ उसे सहारा दिया हो और उसके पश्चात उसे पकड़ कर ले जाकर उसके कमरे में बिठा दिया। रोहन अपने कमरे में बैठकर होमवर्क किया और शाम को जब रोहन उसके मम्मी- पापा तीनों लोग खाना खाने बैठे तब रोहन ने अपने साथ घटित घटना को अपने मम्मी-पापा से बताया।
मम्मी पापा ने रोहन को समझाते हुए कहा, बेटा, ऐसा कुछ भी नहीं है, यह आपका सिर्फ़ वहम् है। ऐसा तो कभी हो ही नहीं सकता। रोहन बच्चा था इसलिए उसने इस बात को तूल नहीं दिया। उसके बाद रोहन जहांँ भी जाता वहांँ वह अदृश्य व्यक्ति उसके साथ-साथ होता। खेल के मैदान में, क्लास रूम में, बस स्टॉप पर ऐसा लगता है जैसे अदृश्य शक्ति उसकी हिफाज़त कर रही हो। एक दिन रोहन घर के सामने के पार्क में ख़ूब खिलखिला- खिलखिला कर हंँसते हुए खेल रहा था। मोनिका ने बालकनी से जो दृश्य देखा उसके बाद उसके हाथ पैर ठंडे होने लगे।
उसने देखा रोहन किसी के साथ खूब बातें कर करके हंँस रहा है और क्रिकेट खेल रहा है। दूसरी तरफ़ एक एक धुंधली सी छाया है जो रोहन के साथ खेल रही है। मोनिका ने इस बात को अपने पति महेश को बताया। महेश ने कहा,क्या मोनिका तुम भी पढ़ी-लिखी होकर रोहन की तरह ही बचकाना बातें कर रही हो। ऐसा कभी भी नहीं हो सकता है। मोनिका ने महेश को बताया नहीं महेश मैंने अपनी आंँख से देखा है। यह मेरा वहम् नहीं है।
कुछ समय पश्चात रोहन मोनिका और महेश मेला देखने के लिए जा रहे थे। रास्ते में उनकी गाड़ी का एक्सीडेंट हो गया।गाड़ी तो चूर-चूर चूर हो गई लेकिन रोहन और उसके माता-पिता को एक खरोच तक नहीं आई। तभी महेश ने देखा की एक धुंँधली सी छाया कार से उतरी वह थोड़ी दूर तक दिखाई दी उसके पश्चात हवा में विलीन हो गई। अब महेश को मोनिका और रोहन की बातों पर विश्वास हो गया।
एक दिन रोहन मोनिका और महेश खाना खा रहे थे तभी अचानक एक पेन उड़ता हुआ आया और डाइनिंग टेबल के मैट पर लिखा सार्थक अनाथालय अजय वंसल और लिखने के बाद वह पेन जहांँ से उठा था वहीं चला गया। महेश और मोनिका यह सब देखकर और भौचक्के से रह गए।उन लोगों ने वह नाम सुना था, लेकिन कहांँ! हांँ, याद आया जिस अनाथालय से वो लोग रोहन को गोद लेकर आए थे ँतीनों उस अनाथालय पहुँचे और वहांँ के अध्यक्ष से उन्होंने इस अजय नाम के बारे में जानना चाहा। पहले तो अध्यक्ष ने कुछ भी बताने से मना कर दिया। लेकिन जब महेश रोहन के साथ घटित घटनाओं का चित्रण किया तब अध्यक्ष ने बताया कि अजय बंसल कोई और नहीं बल्कि रोहन के पिताजी हैं।
दरअसल रोहन एक बहुत ही अमीर माता-पिता का बच्चा था। एक काली रात थी जब तीनों ही घूमने जा रहे थे। गाड़ी का एक्सीडेंट हुआ और उसमें रोहन की मांँ घटनास्थल पर ही अपनी जीवन लीला समाप्त ओकर दी। बाप- बेटे बच गए। रोहन के पिता अजय बंसल रोहन का बहुत देखभाल करते थे। लेकिन कुछ ही समय बाद काल ने रोहन के पिता को भी रोहन से छीन लिया।
रोहन के माता-पिता के जाने के बाद रोहन के ननिहाल- ददीहाल का कोई भी रोहन की जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं हुआ और उसे लाकर यहांँ मेरे पास छोड़ गए।यहांँ अनाथालय में रहते हुए भी सबने यह महसूस किया था कि रोहन के पिता हमेशा रोहन का ख्याल रखते थे।और अब जब रोहन आपके घर में रहता है तो शायद उनकी रूह अब आपके घर में जाकर इसका ख्याल रख रही है ।
लेकिन यहांँ यह बात ध्यान देंना ज़रूरी है कि रोहन के पिता साये की तरह उसके साथ रहते हैं। लेकिन कभी भी उसे नुकसान नहीं पहुंँचाए, हमेशा उसकी देखभाल किये,उसकी सुरक्षा की बात सुनकर मोनिका और महेश अपने घर वापस आ गए और उनकी़ जिंद़़गी बड़ी ख़ुशहाल चल रही थी तभी एक दिन रात को जब महेश और मोनिका अपने कमरे में सो रहे थे एख छाया खिड़की के रास्ते उनके कमरे में आई और अचानक दीवार पर लिखी आप लोग मेरे बच्चे का ख़्याल रखिएगा मैं चाहता था मेरा बच्चा पढ़- लिखकर एक वैज्ञानिक बने। मैं अपने बच्चे को वैज्ञानिक नहीं बनि पाया क्योंकि मुझे काल ने अवसर नहीं दिया। लेकिन आप लोग इसे एक वैज्ञानिक ज़रूर बनाइएगा। मैं हमेशा आप लोगों के साथ रहूंँगा और आप लोग कभी भी डरिएगा नहीं। मैं साये की तरह अपने बेटे और उसकी परवरिश करने वाले उसके माता-पिता की रक्षा करूंँगा। मेरे रहते आपका कोई बाल बांँका नहीं कर सकेगा।
ऐसा कह कर वह धुँंधली छाया हवा में विलीन हो गई और वे लिखे हुए शब्द भी आधे घंटे बाद साफ़ हो गए। और इस तरह से रोहन अपनी मम्मी मोनिका, पिता महेश के साथ खुशी-खुशी रहने लगा। और उसके वास्तविक पिता अजय बंसल एक साये की तरह हमेशा रोहन और उसके मम्मी पापा का ख़्याल रखते। सही कहा जाता है माता-पिता से अधिक बच्चे को कोई प्रेम नहीं कर सकता। रोहन के पिता दुनिया में नहीं थे लेकिन उनकी रूह एक साये की तरह रोहन का ख़्याल रख रही थी।
साधना शाही,वाराणसी
Babita patel
28-Apr-2024 11:03 AM
V nice
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Mohammed urooj khan
24-Apr-2024 11:23 PM
👌🏾👌🏾👌🏾
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